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(भाग:235) मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के कोप के आगे समुद्र नतमस्तक हुआ और पुल निर्माण में किया सहयोग

(भाग:235) मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के कोप के आगे समुद्र नतमस्तक हुआ और पुल निर्माण में किया सहयोग

टेकचंद्र सनोडिया शास्त्री: सह-संपादक रिपोर्ट

मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के धनुष उठाते ही समुद्र शरणागत हो जाता है। प्रभु राम से अनुमय- विनय के बाद वह पार उतरने का उपाय सुझाते हैं। फिर शुरू हो जाता है समुद्र पर पुल निर्माण। प्रभुराम शिवलिंग की स्थापना कर पूजन अर्चन करते हैं। नल- नील समेत तमाम वीर वानरों की मदद से पुल बन कर तैयार हो जाता है। वानरी सेना सिंधु पार होकर लंका पर चढ़ाई में जुट गई। उधर, रावण को खबर लगते ही उसने भी राम से युद्ध की रणनीति तैयार करनी शुरू कर दी है ।

 

बीसवें दिन रविवार को रघुवीर का सेना सहित सिंधु तट प्रयाण, विभीषण मिलन, सेतु- निर्माण, शिव स्थापना की लीला का आर्कषक मंचन किया गया। लंका क्षेत्र में लीलाओं का मंचन श्रद्धालुओं को भाव विभोर कर गया ।

 

माता जानकी के अशोक वाटिका में होने की जानकारी पा कर सुग्रीव वानर राज की अगुवाई में भगवान राम की जय जयकार करती वानर सेना प्रस्थान करती है। समुद्र तट पर सभी पहुंचते हैं। उधर, विभीषण रावण से कहता है कि राम को सीता जी को वापस कर दीजिए। इससे आप का बुरा नहीं होगा। रावण विभीषण से कहता है कि मूर्ख, तेरी मौत नजदीक है। यह कहकर रावण विभीषण को लात मारकर लंका से निकाल देता है। तब विभीषण रथ पर बैठ कर श्रीराम के पास आता है। श्रीराम समुद्र की अराधना कर रहे हैं। तीन दिन तक अनुमय -विनय के बाद भी जब समुद्र रास्ता नहीं देता तो भगवान राम क्रोधित हो कर धनुष उठाते हैं। उन्होंने उत्तर दिशा मे बाण चला दिया । समुद्र श्रीराम को प्रणाम कर चला जाता है। नल -नील जो भी पत्थर समुद्र में डालते हैं वो सब तैरता रहता है । इस तरह सेतु निर्माण कर सेना पार उतरने के लिए तैयारी करती है। वहां भगवान राम शिवजी की स्थापना में लग जाते हैं। प्राण प्रतिष्ठा के बाद पूजन – अर्चन करते हैं। श्रीराम, लक्ष्मण के पीछे हनुमान जी खड़े होते हैं। अन्य वानर भगवान राम सुरक्षा में लगे रहते हैं। शिव स्थापना के बाद जब प्रभु राम शंकर जी की आरती अपने हाथों से करते हैं, तो चारो तरफ हर- हर महादेव का उद्घोष होने लगता है

 

श्री राम सेतु स्वयं भगवान राम ने बनवाया था और समुद्र देवता ने उसको बनवाने में पूर्ण मार्गदर्शन परामर्श और उत्साह बढाने में सहयोग दिया था ।

यदि श्री राम सेतु स्वयं भगवान राम ने बनवाया था और समुद्र देवता ने उसको बनवाने में सहयोग दिया था तो वह खंडित कैसे हो गया? पर भी राम सेतु खंडित नज़र आता है। स्वयं सृष्टि के पालनहार द्वारा बनवाया हुआ पुल कैसे टूट सकता है?

 

यदि श्री राम सेतु स्वयं भगवान राम ने बनवाया था और समुद्र देवता ने उसको बनवाने में सहयोग दिया था तो वह खंडित कैसे हो गया? Google map पर भी राम सेतु खंडित नज़र आता है। स्वयं सृष्टि के पालनहार द्वारा बनवाया हुआ पुल कैसे टूट सकता है?

सर्वप्रथम हमारे बंधु श्री अमरीश तिवारी जी का धन्यवाद जिन्होंने अति उत्तम, रोचक और ज्ञानवर्धक सवाल पूछा। इसका उत्तर तथा वर्णन पद्मपुराण में इस प्रकार मिलता है :

 

धर्म के मार्ग पर स्थित रहने वाले प्रभु श्री रामचंद्र जी ने मन ही मन विचार किया की राक्षस कुलोत्पन्न राजा विभीषण लंका में रहकर धर्मोचित्त राज्य करते रहें, उसमें किसी प्रकार की बाधा ना पड़े इसके लिए क्या उपाय हो सकता है। मुझे चल कर उनके हित की बात बातें चाहिए, जिससे उनका राज्य सदा बना रहे। श्री रामचंद्र जी जब इस प्रकार विचार कर रहे थे, उस समय भरत जी वहाँ आए और उन्होंने उनसे पूछा की श्री श्रेष्ठ , आप क्या सोच रहे है।, यदि कोई गुप्त बात ना हो तो मुझे भी बताने की कृपा करें। इस पर श्री रघुनाथजी बोले की तुमसे और लक्ष्मण मेरी कोई बात छिपाने योग्य नहीं है। इस समय मेरे मन में बस यही विचार चल रहा है की विभीषण देवताओं साथ कैसा बर्ताव करते हैं, क्योंकि देवताओं के हित धर्म की रक्षा के लिए ही मैंने रावण का वध किया था। इसलिए वत्स ,मैं वहाँ जा कर देखना चाहता हूँ की विभीषण धर्मोचित्त राज्य कर रहें है या नहीं । लंका पुरी जा कर राक्षसराज को उनके कर्तव्य का उपदेश करूँगा।

 

भगवान श्री राम के ऐसा कहने पर भरत जी ने कहा भगवन मैं भी आपके साथ जा कर देखना चाहता हूँ की लंका की यात्रा आपने किस प्रकार की थी। इस पर श्री राम ने लक्ष्मण जी को अयोध्या की रक्षा करने का आदेश दिया और पुष्पक विमान से भरत के साथ उन्होंने यात्रा आरम्भ की ।

 

सर्वप्रथम उन्होंने गांधार देश में राज्य कर रहे भरत जी के पुत्रों के राज्य कार्य का निरीक्षण किया तत्पश्चात पूर्व दिशा में जा कर लक्ष्मण जी के पुत्रों से मिले और उसके पश्चात महर्षि भारद्वाज और अत्रि मुनि के आश्रम जा कर उन्हें नमस्कार कर दक्षिण दिशा के यात्रा की ।

 

दक्षिण दिशा में सर्वप्रथम वे जनस्थान पहुँचे जहाँ दुरात्मा रावण ने जटायु का वध किया था और श्री राम का कबंध से भयंकर युद्ध हुआ था। उसके पश्चात वे किष्किन्धा पुरी में सुग्रीव को साथ लेकर उत्तर तट पर पहुँचे। वहाँ पहुँच कर श्री राम भरतजी से बोले – यही वह स्थान हैं जहाँ विभीषण मेरी शरण में आए थे और इस समुद्र तट पर मैं इस आशा से रुका रहा की समुद्र अपना कुटुम्बि जान कर मुझे रास्ता देगा परंतु तीन दिन प्रार्थना करने बाद भी जब समुद्र ने दर्शन नहीं दिए तो मैंने उसे सुखाने के लिए बाण चढ़ा लिया। इससे समुद्र को बहुत भय हुआ और अनुनय विनय के बाद समुद्र ने मुझे पुल बाँधकर महासागर पार जाने का विचार करने को कहा। तब मेरे कहने पर वानरसेना ने तीन दिनो में ही इस कार्य को पूरा कर लिया। पहले दिन उन्होंने चौदह योजन तक का पुल बांधा, दूसरे दिन छत्तीस योजन तक और तीसरे दिन सौ योजन तक का पुल तैयार कर दिया।

 

इसके पश्चात प्रभु श्री राम ने लंका की यात्रा की जहाँ राक्षसराज विभीषण ने अभिवादन करके तथा भरत जी और सुग्रीव से गले मिल कर उनका स्वागत किया और लंका पुरी में प्रवेश करवाया और सब प्रकार के रत्न से सुशोभित रावण के जगमगाते हुए आसान पर उनको विराजमान किया। लंका पुरी में प्रभु श्री राम ने विभीषण और उनके मंत्रिमंडल को धर्मोचित व्यवहार का उपदेश दिया तथा रावण की माता कैकेसी और विभीषण की पत्नी सरमा को दर्शन देकर विभीषण से बोले – तुम सदा देवताओं का प्रिय कार्य करना तथा कभी उनका अपराध ना करना। तुम्हें देवराज की आज्ञा अनुसार ही राज्य करना चाहिए। यदि कोई मनुष्य भी लंका में जाए तो उसका वध मत करना, अपितु मेरे ही तुल्य समझ कर राक्षसों को उनका सत्कार करना चाहिए ।

 

विदा के समय विभीषण जी ने प्रभु श्रीराम को मेघनाद द्वारा इंद्र लोक से विजय चिन्ह के रूप में लायी हुए श्री वामन भगवान की मूर्ति को सब प्रकार के रत्नों से सुशोभित कर के उनसे उस मूर्ति को कान्यकुबज्य राज्य में स्थापित करने की प्रार्थना की। तथास्तु कह कर श्री रघुनाथ जी पुष्पक विमान पर आरूढ़ हुए और उनके पीछे असंख्य रत्नो और देवश्रेष्ठ श्री वामनमूर्ति को ले कर सुग्रीव और भरत भी आरूढ़ हुए । उस समय विभीषण जी ने प्रभु श्रीरामजी से कहा कि:

 

“प्रभु! आपने जो जो आज्ञा मुझे दी हैं मैं उन सब का पालन करूँगा, परंतु महाराज इस सेतु के मार्ग से असंख्य मनुष्य आ कर राक्षसों को सताएँगे? ऐसी परिस्थिति में मुझे क्या करना चाहिए?”

 

विभीषण की ऐसी प्रार्थना सुन कर प्रभु रघुनाथ जी ने हाथ में धनुष लेकर अपने बाण से सेतु के दो टुकड़े कर दिए । उसके पश्चात तीन विभाग करके बीच का दस योजन तोड़ दिया। उसके बाद एक स्थान पर एक योजन और तोड़ दिया । तदांतर वेलवान (वर्तमान रामेश्वर) में पहुँच कर महादेव की स्थापना करके विधिवत पूजन किया किया तथा गंगा तट पर महोदय तीर्थ में भगवान वामन जी को स्थापित पर दिया।

 

उपरोक्त से स्पष्ट है कि रामसेतु का विदीर्ण होना प्रकृतिक घटना नहीं है, वह स्वयं श्री राम द्वारा राक्षसराज विभीषण की सुरक्षा के लिए किया गया था

समुद्र में बना सेतु, लंका पहुंची वानर सेना

 

बार-बार निवेदन के बाद भी जब रावण सीता को नहीं छोड़ता है तो राम अपनी सेना के साथ लंका पंहुच गए है।

बार-बार निवेदन के बाद भी जब रावण सीता को नहीं छोड़ता है तो राम अपनी सेना के साथ लंका पर चढ़ाई की तैयारी करते हैं। चारों दिशाओं में वानरों की सेना भेज दी जाती है। बड़ी मशक्कत के बाद समुद्र में सेतु का निर्माण किया जाता है। राम की सेना लंका में पहुंच जाती है तथा हनुमान मां सीता को आश्वस्त करते हैं कि वे अब सुरक्षित हैं। सीता जब हनुमान से राम के बारे में जानना चाहती हैं तो हनुमान की आंखों में आंसू आ जाते हैं। यह दृश्य इतना मार्मिक था कि अधिकांश दर्शकों की आंखें नम हो जाती हैं। पथरचट्टी रामलीला के सातवें दिन विभीषण का प्रभु राम की शरण में आना, वानरी सेना द्वारा परिलक्षित उत्साह और हनुमान का अशोक वाटिका में सीता से मिलने का मंचन हुआ

 

लक्ष्मण द्वारा कुंभकर्ण का वध

 

इलाहाबाद : पजावा रामलीला कमेटी के तत्वावधान में लक्ष्मण द्वारा कुंभकर्ण वध का सजीव मंचन किया गया। कुंभकर्ण से बदला लेने के लिए लक्ष्मण ने जब उसे ललकारा तो उसने एक से बढ़कर एक शस्त्रों का प्रयोग किया। लक्ष्मण भी किसी तरह युद्ध को जल्द से जल्द समाप्त करना चाहते थे। जब लक्ष्मण ने कुंभकर्ण का वध किया तो लोग प्रभु श्रीराम के जयकारे लगाने लगे। आधुनिक तकनीक पर आधारित मंचन का लोगों ने भरपूर आनंद लिया।

बाघम्बरी क्षेत्र रामलीला कमेटी के तत्वावधान में चल रही रामलीला में बुधवार को लंका दहन व बालि वध का सजीव मंचन किया गया। लंका में सीता से मिलने पहुंचे हनुमान की पूंछ में जब रावण सेवकों ने आग लगा दी तो वे इधर-उधर अट्टालिकाओं पर दौड़ने लगे। आग की लपटों से सोने की लंका जल गई। इसके बाद बालि वध का मंचन किया गया। रामलीला मंचन में सुरेंद्र पाठक, कुंजबिहारी मिश्र, प्रेमचंद्र, शैलेंद्र शर्मा, यदुनाथ, रामाश्रय दूबे व बाबुलाल त्रिपाठी का अहम योगदान रहा।

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