Breaking News

भगवान्‌ नाग नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का महत्व और संक्षिप्त इतिहास

Advertisements

गुजरात : ऐसा माना जाता है की नागेश्वर अर्थात की नागों का ईश्वर नागों का देवता वासुकी जी भगवान शिव जी के गले में कुंडली मार कर बैठे रहते है । इस मन्दिर मैं स्थापित ज्योतिर्लिंग का दर्शन करने वालों के लिए भगवान शिव जी की बहुत महिमा है। कहा जाता है कि इस मंदिर में विष से संबंधित सभी रोग से मुक्ति प्राप्त हो जाती है। भगवान शिवजी के 12 ज्योतिर्लिंगों में स्थापित श्री विश्वनाथ का यह दसवां ज्योतिर्लिंग माना गया है।
भगवान शिव जी के इन मंदिरों को ज्योतिर्लिंग कहा जाता है, क्योंकि इन स्थानों पर भगवान शिव जी अपने भक्तों की श्रद्धा पूर्वक पूजन से प्रसन् होकर स्वयं उत्पन्न हुए थे। धार्मिक ग्रंथों के लेखों में कहा गया है कि इस पवित्र ज्योतिर्लिंग के श्रद्धा पूर्वक दर्शन करने से पापों से मुक्ति प्राप्त होती है। हिंदुओं का यह प्राचीन एवं प्रमुख मंदिर केवल भगवान शिव जी को समर्पित है। जिसमें शिवजी की श्रद्धा पूर्वक पूजा आराधना नागेश्वर के रूप में की जाती है। इस ज्योतिर्लिंग को रूद्र संहिता में दारकावने नागेश के नाम से भी जाना जाता है
धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान शिव को नागों के देवता के रूप में जाना जाता है। नागेश्वर का संपूर्ण अर्थ नागों का ईश्वर है। पौराणिक कथाओं में इस ज्योतिर्लिंग के दर्शन की कथा एक बड़ी विशाल महिमा बताई गई है। इस ज्योतिर्लिंग की भी विभिन्न रोचक कहानियां है जिसे सभी श्रद्धा पूर्वक सुनते हैं। कहा जाता है कि महात्माओं की कथा को श्रद्धापूर्वक सुनने से जीवन में किए गए सभी पापों से मुक्ति मिलती है।
यह मंदिर सुबह 5:00 बजे आरती के साथ खुलता है, किंतु भक्तों के लिए यह मंदिर 6:00 बजे खुलता है।
मंदिर के पुजारियों द्वारा कई विधियों द्वारा शिवजी की श्रद्धा पूर्वक पूजा तथा अभिषेक किए जाते हैं। भगवान शिव जी के द्वार पर आने वाले श्रद्धालुओं के लिए शाम 4:00 बजे श्रृंगार दर्शन होते हैं, तत्पश्चात गर्भ गृह में प्रवेश करने पर प्रतिबंध होता है। यहां पर पुजारियों द्वारा भगवान शिव जी की शाम की आरती सांय 7:00 बजे की जाती है तथा भक्तों के दर्शन का समय रात्रि 9:00 बजे समाप्त हो जाता है। भगवान शिव जी के त्यौहार और विषेश शुभ अवसर पर यह मंदिर अधिक समय तक खुला रहता है।

Advertisements

*नागेश्वर ज्योतिर्लिंग का निर्माण कार्य:-*

Advertisements

भगवान शिव जी के इस दसवीं ज्योतिर्लिंग का निर्माण कार्य अत्यंत अद्भुत तथा सौंदर्यकरण विधि से करवाया गया है। नागेश्वर मंदिर के मुख्य गर्भ गृह के निचले स्तर पर भगवान शिव जी के इस ज्योतिर्लिंग को स्थापित किया गया है। इस ज्योतिर्लिंग के ऊपर भगवान शिव जी का एक चांदी का बड़ा नाग स्थापित किया गया है। इतना ही नहीं इस अद्भुत ज्योतिर्लिंग के पीछे ही माता पार्वती की प्रतिमा की स्थापना भी की गई है। इस ज्योतिर्लिंग का मंदिर अत्यंत अद्भुत सौंदर्य पूर्वक तरीके से बनाया गया है। कहा जाता है, कि जिन श्रद्धालुओं को ज्योतिर्लिंग का अभिषेक करना है वहां के पुजारियों से अनुरोध करके सफेद धोती पहनकर अभिषेक करवाते हैं।
धार्मिक पुराणों के अनुसार कहा जाता है, कि सुप्रिय नामक एक धार्मिक तथा सदाचारी वैश्य था। वह भगवान शिव जी का परम भक्त था। वह इतना शिव प्रेमी था की भगवान शिव जी की दिनभर आराधना और ध्यान में लीन रहता था। वह अपने कार्य भगवान शिवजी को अर्पित करके ही करता था। मन, क्रम, वचन सबसे वह शिव जी की पूजा में लगा रहता था। उसकी श्रद्धा पूर्वक शिवजी की पूजा आराधना से दारुक नाम का राक्षस अत्यंत घृणा करता था। वह निरंतर यह प्रयत्न करता था कि उसकी पूजा आराधना में विघ्न पैदा करें।
वह सुप्रीय की पूजन विधि में विघ्न पैदा करने के लिए अवसर देख रहा था तभी उसे एक दिन बहुत सुनहरा अवसर प्राप्त हुआ। जब सुप्रिय अपने नौका पर सवार होकर कहीं जा रहा था, तभी दारुक ने उस पर आक्रमण कर दिया। उस पर आक्रमण करने के पश्चात उसकी नौका में सवार सभी यात्रियों को पकड़कर अपनी राजधानी में ले जाकर सुप्रिय सहित सभी यात्रियों को कैद कर लिया।
सुप्रीय शिव जी का परम भक्त होने के कारण वह कारागार में भी निरंतर भगवान शिव जी की पूजा आराधना श्रद्धा पूर्वक करने लगा। वह अपने साथ कारागार में कैद किए गए यात्रियों को भी भगवान शिव जी की भक्ति की प्रेरणा देता तथा उन्हें पूजन विधि करने का अनुरोध करता। इस विषय में दारूक के सेवक द्वारा सुप्रीम की शिव भक्ति की समाचार जब उसे प्राप्त हुई तो वह अत्यंत क्रोधित होकर उसके कारागार में जा पहुंचा।
सुप्रिय कि भगवान शिव जी के प्रति अत्यंत ध्यानपूर्वक मुद्रा को देखकर दारूक को अत्यंत क्रोध आया तो उसने अपने एक राक्षस से कहा कि उसके इस ध्यान को भंग करें। अत्यंत प्रयत्न करने के बावजूद राक्षस उनका ध्यान भंग करने में असफल रहें। यह देख कर दारुक के क्रोध की सीमा बढ़ गई । उसने क्रोध में आकर सुप्रिय तथा उसके यात्रियों को तुरंत मृत्युदंड देने का आदेश दिया। किंतु सुप्रीय उसके इस आदेश से भयभीत नही हुआ और न ही ध्यान मुद्रा को भंग किया।
इस आदेश से मुक्ति पाने के लिए वह ध्यानपूर्वक भगवान शिव जी की एकाग्र मन से आराधना करने लगा। उसे अपने भक्ति तथा शिव जी की महिमा पर विश्वास था। उसकी प्रार्थना शिवजी ने स्वीकार की तत्पश्चात शिव जी उसी क्षण कारागार में एक ऊंचे स्थान पर चमकते हुए सिहासन पर स्थित होकर ज्योतिर्लिंग के रूप में प्रकट हो गए। शिव जी ने अपने परम भक्त को दर्शन देकर अपना अस्त्र भी प्रदान किया जिससे सुप्रीय ने दारूक राक्षस तथा उसके सहायक का वध करके शिव जी के धाम में चला गया।
नागेश्वर ज्योर्तिलिंग किस राज्य में स्थित हैं?
गुजरात के द्वारकापूरी से 17 किमी दूर स्थित हैं। यह शिव के 10वें ज्योर्तिलिंग कहां जाता हैं।
गुजरात राज्य में शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में सोमनाथ ज्योर्तिलिंग का प्रथम स्थान है इसके अलावा नाग नागेश्वर ज्यार्तिलिंग भी गुजरात में द्वारिका से 17 किमी दूरी पर स्थित हैं।
नागेश्वर ज्योर्तिलिंग की उत्पत्ति किस तरह हुई?
भगवान शिव हमेंशा अपने भक्तों की रक्षा करते हैं। एक बार जब शिवभक्त सुप्रिय भक्ति में लीन था तब दारुका नामक राक्षस ने उन्हें मारने का आदेश दिया, अपने भक्त की रक्षा के लिये सदाशिव उसी समय प्रकट हुये और पाशुपतास्त्र प्रदान करते हुये दारुकों को समाप्त कर दिया। तभी से शिवजी स्वभूं नागेश्वर ज्योर्तिलिंग के रुप में सदा के लिये यहां पर स्थापित हो गये।

Advertisements

About विश्व भारत

Check Also

(भाग:321) हल्का फीका बादामी पीलापन रंग वाला और गाढा अमृत तुल्य होता है कपिला धेनु का दुग्ध और घी

(भाग:321) हल्का फीका बादामी पीलापन रंग वाला और गाढा अमृत तुल्य होता है कपिला धेनु …

अभिनेता शेखर सुमनने धार्मिक मूर्ती घराबाहेर का फेकल्या होत्या?

अभिनेता शेखर सुमन सध्या संजय लीला भन्साळी यांच्या ‘हीरामंडी’ सीरिजमुळे चर्चेत आहेत. त्यांनी नुकतंच आयुष्यातील …

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *